Add To collaction

लेखनी कहानी -04-Mar-2022 मैं नशे में हूं

मैं नशे में हूं

कल रात श्रीमती जी की कृपा हो गई थी और उन्होंने खाने में रोटी के साथ गुड़ की एक डली रख दी थी । कसम से मज़ा आ गया । गुड़ खा के ऐसा नशा चढ़ा कि उतरने का नाम ही नहीं लिया । मुझे पता ही नहीं था कि गुड़ में भी इतना नशा होता है । एक बार बाबा बता रहे थे कि जो चीज नहीं होती है हमारे पास , अगर वो मिल जाये तो ऐसा नशा देती है कि सौ दारू की बोतलों से भी ऐसा नशा नहीं होता है । आज वो बात सच लगने लगी ।

मेरा हैंग ओवर अभी खत्म नहीं हुआ था । अचानक मोबाइल की घंटी ने सारा नशा उतार दिया । उधर से " निराशा "भाभी बोल रही थी । रोते रोते बोली ।

" भैया जी , हम लुट गये । बर्बाद हो गये । हमें बचा लो भैया जी "
मैं सकते में आ गया । काटो तो खून नहीं । घबरा के कहा
" तनिक धीरज रखो भाभी । बताओ तो सही हुआ क्या है "
क्या बतायें भैया । हमारो तो जीवन बर्बाद ही हो गया है । वो चिंटू के पापा ...
मैं हड़बड़ी में बोला , "क्या हुआ पियक्कड़ सिंह को । वो सकुशल तो है ना "
" क्या खाक सकुशल हैं ? हमसे तो उनकी दशा देखी ही नहीं जा रही है " । वो हिलकी लेते लेते बोलीं ।

मुझे मामला बहुत सीरियस नजर आया पर मैं कर भी क्या सकता था । लॉकडाउन में जो फंसा हुआ था । पहले सारी बात तो पता चले । उसके बाद देखेंगे कि क्या किया जा सकता है क्या नहीं

" पहले बात तो बताओ । फिर सोचेंगे कि क्या करना है "
वो रोते रोते बोली , " भैया , चिंटू के पापा भांगड़ा कर रहे हैं "
मैंने आश्चर्य से पूछा " भांगड़ा कर रहे हैं ? अरे , भांगड़ा कर रहे हैं तो करने दो । यह तो अच्छी बात है । इसमें रोने का क्या है जो आप ऐसे रोये जा रही हो "
" आप समझ नहीं रहे हो भैया । ये आज सुबह से ही भांगड़ा कर रहे हैं । चार घंटे हो गये हैं,  नॉनस्टॉप । अब तो लाइट भी चली गई है । कनस्तर पीट पीट कर ही भांगड़ा कर रहे हैं । मुझे तो ऐसा लग रहा है कि थोड़ा सा सरक गये हैं "
मैं थोड़ा चिंतित हुआ । मैं पियक्कड़ सिंह को बरसों से जानता हूं । दिल का बहुत नेक बन्दा है । यारों का यार है ,दिलदार है । बचपन में इसका नाम प्यारा सिंह था लेकिन पीने की आदत ऐसी पड़ी कि रात और दिन , सुबह और शाम । बस एक ही काम । हाथ में हरदम कम से कम एक जाम । इस आदत के कारण उसके घरवालों ने उसका नाम पियक्कड़ सिंह कर दिया था ।तब से ही सब लोग उसे पियक्कड़ सिंह कहते हैं। अब तो खुद उसे अपना असली नाम पता नहीं है। एक दिन मैंने उसे आवाज दी " प्यारा सिंह " तो वह इधर-उधर देखकर बोला , " पा जी , ये प्यारा सिंह कौन है ?" मैंने कहा " सॉरी, मैंने गलती से तुझे प्यारा सिंह बोल दिया था " । वो बहुत नाराज़ हुआ और कहने लगा , " पा जी । आप चाहे मुझे गाली दे दो पर मेरा नाम पियक्कड़ सिंह ही बोला करो । इस नाम से ही मुझे नशा सा छा जाता है " । तब से लेकर आज तक फिर कभी गलती नहीं की । वह पीकर के भांगड़ा करता है ये तो जानता था पर इस तरह से घटिया हरकत पर उतर आयेगा कि कनस्तर पीट पीट कर नाचेगा , सोचा नहीं था । निराशा भाभी से  बोला ।

" पर ये तो बताओ हुआ क्या था । क्या आपने सुबह-सुबह मायके जाने का शुभ समाचार सुना दिया था क्या उसको "?

"नहीं , ऐसी कोई बात नहीं थी । वो तो सुबह सुबह अखबार पढ़ रहे थे । अचानक जोर से बोल पड़े ' ओये , बल्ले बल्ले ' और टेप चलाकर भांगड़ा करने लग गये । पहले तो मैं खुश हो गई उनको भांगड़ा करते देखकर । चलो डेढ़ महीने तक घर में पड़े रहने के बाद भी ये भांगड़ा करने लायक तो हैं अभी । मैं तो सोचती थी कि इतने दिन लॉकडाउन में बंद रहने के बाद न तो ये तीन में रहे और न तेरह में  लेकिन ये तो भांगड़ा करते  गये करते गये । इतने में लाइट भी चली गई । ये एक पुराना कनस्तर उठा लाये और उसे ही पीट पीट कर फिर से भांगड़ा करने लगे " ।

मुझे अब पियक्कड़ सिंह से ईर्ष्या होने लगी । उसे कौन सा ऐसा कारू का खजाना हाथ लग गया है कि उसके पैर रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं । पर अब ये समय जलने का नहीं है ।इस पर फिर कभी देखा जायेगा अभी तो उसके भांगड़ा करने का  कारण तो खोजना पड़ेगा ना । इसलिए मैंने उनसे कहा
" एक बार आप मेरी पियक्कड़ सिंह से बात करा सकतीं हैं क्या "
वो सुबकते हुए बोली , " कोशिश करती हूं "

और उन्होंने पियक्कड़ सिंह को मोबाइल दे दिया । पियक्कड़ सिंह ने पहले बात करने से मना कर‌ दिया लेकिन जब उसे कहा गया कि मैं बात करूंगा तो वह बात करने को राजी हो गया । चाहे किसी की बात माने या ना माने लेकिन इस बंदे की बात आज तक कभी टाली नहीं पियक्कड़ सिंह ने । सोच कर गर्व हुआ कि घर में चाहे अपनी औकात दो कौड़ी की नहीं है लेकिन बाजार में इज्जत बहुत है । सच में सीना फूलकर कुप्पा हो गया। घोर कलयुग में अगर ऐसा भक्त कहीं मिल जाये जो अपनी पत्नी की बात चाहे ना माने लेकिन आपकी बात टाले नहीं , तो भक्त और भगवान की सी फीलिंग होने लगती है ।

मैंने फोन पर कहा " अरे , पियक्कड़ सिंह । आज क्या कोई खजाना हाथ लग गया है जो इतना जश्न मना रहा है ? "
वो भांगड़ा करते करते बोला । " बस भाईसाहब पूछो ही मत । आज तो आनंद आ गया "
" तू अकेला अकेला आनंद ले रहा है और हम लोग यहां लॉकडाउन में सड़ रहे हैं "
" आप भी भांगड़ा पाओ पा जी "
" अरे कैसे भांगड़ा पाऊं यार । कोरोना की दहशत कुछ करने ही कहां देती है "
" भूल जाओ पा जी कोरोना को । खबर ही कुछ ऐसी है कि आप भी डांस करने लगोगे, डांस "
मैंने कहा , " पहेलियां ही बुझाता रहेगा या कुछ दस्सेगा भी "
" भाईसाहब, सरकार अब लॉकडाउन 3.0 में शराब की दुकानें खोलने जा रही है और ये समाचार पढ़कर मेरे तो पांव रुक ही नहीं रहे हैं । "

मैंने मन ही मन सरकार को कोसा । हरदम भेदभाव करती है हम आम  लोगों के साथ । इनके लिए तो दारू की दुकानें खुलवा दीं और हमारे लिए चाय / लस्सी की एक दुकान तक नहीं खुलवाई । अब महसूस होने लगा कि वास्तव में शराब कितनी महान है और चाय कितनी तुच्छ । पियक्कड़ सिंह की गिनती वी आई पी लोगों में होती है और हमारी गिनती आम लोगों में । सरकार में बैठे सब नेता , अफसर , बड़े व्यवसायी , पत्रकार , कलाकार सबकी संजीवनी बूटी " शराब " ही तो है । इन लोगों ने डेढ़ माह से एक बूंद तक गले से नीचे नहीं उतारी । इतना महान त्याग । ये तो प्रधानमंत्री की कुर्सी त्यागने से भी बड़ा त्याग है । मेरा मस्तक स्वत: ही श्रद्धा से झुक गया । अब कोरोना से लड़ने के लिए ऊर्जा खत्म हो चुकी थी। बैटरी को रीचार्ज करना आवश्यक हो गया था। बिना रीचार्ज के मोबाइल एक दिन नहीं चलता , ये तो डेढ़ महीने से चल रहे हैं । इसलिए इनको तो उसकी बहुत आवश्यकता है । पियक्कड़ सिंह भी उन लोगों की जमात में शामिल हो गया जो 'अंगूर की बेटी' के आशिक हैं ।ये सब वी आई पी लोग हैं । अपना क्या है अपुन आम आदमी है और आम आदमी की औकात ही क्या है ?

लॉकडाउन लगने के तीन चार दिन बाद ही पियक्कड़ सिंह की तबीयत खराब हो गई थी। हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा था उसको । दो तीन दिन आई सी यू में रहा । कोई फायदा नहीं हुआ । लगा कि भक्त और भगवान का संबंध यहीं तक था । अचानक मुझे याद आया कि पियक्कड़ सिंह तो बिना पिये एक मिनट नहीं रह सकता है । जब से लॉकडाउन हुआ है , इसके हलक में एक बूंद तक नहीं गयी है । क्या पता उसी के कारण इसकी तबीयत खराब हो ।

मैंने निराशा भाभी को कहा कि आप के पास दारू की कोई बोतल वोतल है क्या ? उन्होंने आग्नेय नेत्रों से मुझे देखा । मैंने बात संभालते हुए कहा कि इनको उसी बोतल की जरूरत है । थोड़ी सी अगर अंदर चली गई तो संभवतः ये जी जाये नहीं तो ...

वे तुरंत समझ गई । उन्होंने कहा कि हां कुछ बोतलें मैंने छिपा कर रख दीं थीं । इनको पता नहीं है ।
मैंने राहत की सांस ली और भारतीय नारियों पर गर्व महसूस किया । संकट के समय में देवियां ही प्राण बचातीं हैं । चोरी चोरी ही सही कुछ पैसा बचाकर अपने पास रखतीं है जो आपातकाल में काम आता है । इसलिए मैंने सोचा कि भाभीजी ने कुछ बोतल भी छिपा कर जरूर रखीं होंगी क्योंकि आदतें बदलतीं नहीं हैं । उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ बोतल उन्होंने छिपा कर अपनी वार्डरोब में रख रखी हैं । मुझे लगा कि अब इस सत्यवान  को भाभीजी रूपी सावित्री यमराज से छीन कर लें आयेंगी ।

मैंने कहा कि इन्हें तुरंत डिस्चार्ज करवा कर घर ले चलो। घर पर एक दो बोतल दारू की चढवा देंगे तो शायद यह ठीक हो जाये । उन्होंने भी तुरंत सहमति दे दी।

घर ले जाकर उनको पहले व्हिस्की का एक पव्वा चढ़ाया गया । व्हिस्की का रस जैसे ही उसकी रगों में मिला उनके शरीर में हरकत होने लगी । फिर स्काॅच की बोतल चढ़ाई । उन्होंने आंखें खोल दी । वोदका के अंदर जाते ही उठकर बैठ गये । मैं भी मान गया कि कोई जमाने में संजीवनी बूटी हिमालय में उगती थी आज यह बोतल में बंद होकर गली गली में मिलती है । ऐसी संजीवनी बूटी उपलब्ध करवा कर सरकार ने न जाने कितने पियक्कड़ सिंहों के प्राण बचा लिये । सच में आज यही शराब लोगों की लाइफ लाइन बन गई है। उसके ठीक होने के बाद भाभीजी उसे रोज चखना खिलाती हैं और चुपके से उसमें कुछ बूंदें व्हिस्की की गंगाजल की तरह छिड़कती हैं । बस उसी से जिंदा रहता आया है ये आज तक ।

फिर मुझे ध्यान आया कि जयपुर तो रैड जोन में है और रैड जोन में तो शराब की दुकानें बंद ही रहेंगी । तो फिर ये पियक्कड़ सिंह इतना भांगड़ा क्यों कर रहा है । मैंने अपनी जिज्ञासा उसे बताई तो वह बोला

भाईसाहब , माना कि अपना जयपुर रैड जोन में है लेकिन पड़ौसी जिले दौसा, टोंक, अलवर , सीकर तो औरेंज जोन में है । वहां तो खुलेंगी ये दुकानें । बस अपना तो काम बन जाएगा ।

मैंने कहा कि ये सभी जिले जयपुर से कम से कम 50 किलोमीटर दूर हैं । कैसे लायेगा ।

वो जोर से हंसा । कहने लगा । मेरे पिताजी कहा करते थे कि

रम , स्काच पांच कोसी , शैम्पेन पूरे बीस ।
जो मिल जाए वोदका , तो दौड़ूं कोस तीस ।।

अर्थात , रम स्कॉच के लिए 5 कोस , शैंपेन के लिए 20 कोस और वोदका के लिए 30 कोस तक दौड़ सकता हूं ।

भाईसाहब , अपने बाप का बेटा हूं । उनसे कम तो नहीं हूं ना । अगर वे तीस कोस अर्थात 100 किलोमीटर दौड़ कर दारू ला सकते थे तो मैं तो 150 किमी तक दौड़ सकता हूं । पड़ौसी जिले इससे ज्यादा दूर तो नहीं हैं ना ।

मुझे पियक्कड़ सिंह की क्षमता पर कोई संदेह नहीं था । लेकिन मुझे लगा कि एक ही ब्रांड पीते पीते बोर नहीं हो जायेगा वो । इसलिए पूछ ही लिया । वो बोला

आप रोजाना चाय पीते हो ? एक ही चीज दिन में चार बार पीते हो ?  कभी बोर हुए हो  उससे ?

उसके अकाट्य तर्क के सामने मैं ढेर हो गया । कुछ कह पाता उससे पहले ही वो बोला

" मैंने सब इंतजाम कर लिया है  भाईसाहब। बकार्डी रम और जानी वाकर स्काॅच टौंक से, रायल स्टैग , इंपीरियल ब्लू , मैकडोनाल्ड नंबर वन और आफीसर्स चॉइस व्हिस्की अलवर से , ग्रीन मार्क , एब्सोल्यूट, स्मिरन ऑफ वोदका सीकर से शोचू , जिन , टकीला वगैरह दौसा से ले आऊंगा । सच में जिंदगी फिर से बन जायेगी अपनी तो । अब आयेगा मजा । "

अब तो मुझे अपनी हैसियत पर बहुत शर्म आने लगी । मुझे लगा कि पियक्कड़ सिंह उन लोगों में से हैं जो सदियों से पीते रहे और बरसों तक राज करते रहे । मैं बेचारा वह चायवाला हूं जो पहले भी चायवाला था और आज भी चायवाला ही है ।

अब मैं भी भांगड़ा करके उसकी खुशी में चार चांद लगाने लगा । मैंने उसे बधाई देते हुए कहा कि

झूम बराबर झूम पियक्कड़
झूम बराबर झूम ।।

हरिशंकर गोयल "हरि"


   9
6 Comments

Art&culture

05-Mar-2022 11:52 PM

नाइस

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

06-Mar-2022 06:11 AM

धन्यवाद जी

Reply

सर पढ़कर बहुत हँसी आयी😂😂 बहुत ही कॉमेडी से भरपूर स्टोरी है मजा आ गया। पर एडिटिंग की जरूरत है🙁 वो कर लीजियेगा।

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

05-Mar-2022 12:42 AM

जी, सुंदर और उत्साह वर्धक समीक्षा के लिए आभार । एडीटिंग करने की कोशिश करता हूँ

Reply

Arshi khan

04-Mar-2022 07:13 PM

बेहतरीन स्टोरी

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

05-Mar-2022 12:41 AM

धन्यवाद जी

Reply